Monday, December 19, 2011

अदम गोडंवी को समर्पित कविताए

अदम गोंडवी खामोश क्यूं है


दर्द को जुबां दे पाता तो बता देता
आज वो खामोश क्यूं है
मोतियां आखों की बिखरनें से
रोक पाता तो बता देता
आज वो खामोश क्यूं है

महलों में नही दिलो में रहता था
दिलों के जख्म दिखा पाता तो बता देता
आज वो खामोश क्यूं है

लोगो की जुबां पर चढ गयी है बातें उसकी
शब्दों में अब भी जुबां है उसकी
उसकी जुबां में कह पाता तो बता देता
कि वो खामोश क्यूं है

राख बन कर मिल गया
धरती आकाश जल हवा अगिन में
हिन्दी जमीं इस खाली जमीं को
भर पाता तो बता देता
अदम गोंडवी खामोश क्यूं है

एक सूरज था जो आखिर ढल गया

फिर अन्धेरों को सौप कर ये देश
एक सूरज था जो आखिर ढल गया
अंत तक कहता रहा
ना लेना एहसान किसी का
वो अदम था,आखिर चला गया

जो जाते जाते भी कुछ कह गया
बगावत की जमीं पर काव्य को खडा कर
आदमी के हकों की बात ऐसी कह गया
भूल ना सकेगीं हिन्दी की सरजमीं जिसे
वह अदम था,आखिर चला गया

गूंजते है अब भी उसके शब्द
हिन्दी भाषियों के जुबानों पर
एहसासों के हर किवाड पर
खालीपन कितना ज्यादा भर
एक सूरज था जो आखिर ढल गया
वह अदम था,आखिर चला गया

अब बची है
सिर्फ उसके काव्य की रोशनी
फिर अन्धेरों को सौप कर ये देश
एक सूरज था जो आखिर ढल गया

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