Wednesday, March 9, 2011





Journalism is a river of challenge.where u never stop confronting the tough times ahead . In jornalist's life every day is a ACID test .....

पत्रकारिता शिक्षा और युवा ......... रवि शंकर मौर्य

पत्रकारिता शिक्षा और युवा
(रवि शंकर मौर्य )
हमारे देश मे तकरीबन 20 से ज्यादा भाषाऐं बोली जाती है।कई संस्कृतियां यहां पनपी पोषित और पल्लिवत हुयी।कई बोलियों ने भाषाओं का रूप लिया।और कई विषयों ने नए स्वरूप पाए।पिछले कुछ वर्षो में पत्रकारिता के विषय ने जो नया स्वरूप पाया है।उसने समाचार पत्र व समाचार चैनलों के मालिकों को व्यवसाय का एक नया रास्ता दिखाया है।कुछ मीडिया मठाधीषों को भी ये रास्ता भाया।और तमाम ने पत्रकारिता के व्यवसाय को अपना पत्रकारिता के नाम और अपनी साख को बेचना शरू किया।छोटे बडे मीडिया हाउस व तमाम लोगो ने अपनी पत्रकारिता की दुकानें खोली।और पत्रकारिता की मशीनी विद्या सिखाने का नया धंधा शुरू कर दिया।इस लेख को लिखते लिखते कुल दीप नैयर साहब की एक लाइन याद आ रही है कि ष्ष्जब लोकतंत्र में हर कोई लोकमत को अपनी ओर मोडने का प्रयत्न करे तो ऐसे समय में एक विशेष प्रकार की पत्रकारिता जन्म लेती हैश्श्।आप खुद महसूस करके देखे कितना सटीक व सही लिखा है।जो अक्षरशः आज के परिवेष में सच की तरह दिख रहा है। पत्रकारिता का उदभव 131 ई पूर्व रोम में हुआ था।और आज पूरे विश्व में पत्रकारिता युवाओं के एक पंसदीदा विषय में एक है,और अपने देश में भी।तमाम युवा अपने जीवन को पत्रकारिता के इस ग्लैमर से रंगना सजाना व अपने नाम को बडा होता देखने के लिए इस क्षेत्र में कदम रखते है। लेकिन युवाओं के इस विषय के प्रति के आर्कषण ने पत्रकारिता में एक अजब सा माहौल ला दिया है।उनके इस दिलचस्पी का खासा मुनाफा पत्रकारिता के बाजार ने कमाया है और कमा रहें है।क्योंकि आज की पत्रकारिता कोई सरोकारी पत्रकारिता नही।आज के समाचारपत्रों व समाचार चैनलों को खबर चाहिऐ कम से कम पैसे में। पहले उन्होंने अध्यापकों आदि दूसरें कार्य कर रहें लोगो को साथ लेकर अपने इस उददेश्य को पूरा किया।आज फुल टाइम कम पैसे में काम करने वाले मिल रहे है। और 100 प्रतिशत प्लेशमेंट के नाम पर पैसे लेकर पत्रकारिता को सीखाने की व्यवस्था बनी हुयी दिखाई दे रही है। विश्वविद्यालयों को छोड दे,तो पत्रकारिता के जो छोटे बडें संस्थान हैउनमें ज्यादातर मंहगी फीस लेकर जो सार्टिफिकेट दे रहें है वो कही से एप्रूबड नही होते पूरे के पूरे फर्जी सार्टिफिकेट होते है। अब रही पत्रकारिता के शिक्षा की बात तो इतनी मंहगी और गुणवत्ता विहीन पत्रकारिता की शिक्षा का हाल है। कमोबेस विश्वविद्यालयों में भी पत्रकारिता के स्टूडेंट अपनी शिक्षा से संतुष्ट नही है। इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर बहस की सख्त आवश्यकता बनती जा रही है।इन प्राइवेट कालेजों की मंहगी शिक्षा का विरोध भी हूआ है।लेकिन पत्रकारिता की ताकत व साख ने बदस्तूर इस शिक्षा व्यवस्था को जारी रखा हुआ है।ये तथाकथित चैनल व अखबार अपने मंच के आबाज के जरिए और अपने यहां नौकरी के लालच को दिखा इस मंहगी पत्रकारिता की शिक्षा को बदस्तूर जारी रखें हुऐ है।शिक्षा के गुणवत्ता और उसके प्रमाण पत्र के गुणवत्ता के आधार पर ही किसी संस्थान की फीस होनी चाहिएं।ना किसी लालच के बदले फीस वसूलने की व्यवस्था।शिक्षा के इन्ही व्यवसायीकरण के परिणामतः आज की शिक्षा व्यवस्था मानक स्तरों के पास तो नही पहुचती।बल्कि ग्लैमर और अन्य ना जाने किन मानकों के करीब होती जा रही है। इस व्यवस्था को चलाने वाले खासे धनी व नामी गिरामी संस्थान व लोग है।इसलिए पत्रकारिता के इस नऐ व्यवसाय पर कोइ अंकुश नही लग पा रहा है।कौन किस संस्थान की पोल खोले।क्यों कि चोर चोर मैसेरे भाई पत्रकारिता संस्थान तो कमोबेस सभी छोटे बडे चैनल अखबार व इससे जुडे लोग चला रहें है।और नही चला रहें तो आगे चल कर चलाऐंगें।इसलिए पत्रकारिता बेचने का धंधा बदस्तूर जारी है।समाज में ये पैसा उगाही का एक ऐसा रास्ता है,जो गलत होते हुऐ भी पूरे सम्मान के साथ जारी है।इस व्यवस्था पर लगाम लगनी जरूरी है।

( लेखक पत्रकारिता से जुडें है ये 2006 में हिन्दी से परास्नातक व 2009 में पत्रकारिता से परास्नातक की पढाई पूरी कर पत्रकारिता के पेशे से जुडे।इन्होने दूरर्दशन व जी न्यूज से ट्रेनिंग के बाद खोज इंडिया न्यूज में बतौर प्रोडूसर काम किया।इसके बाद इन्होने राजस्थान के कोटा शहर में दैनिक नवज्योति व दैनिक भास्कर के लिए रिर्पोटर के तौर पर काम किया है। लेखक का मीडिया के तमाम विषयों पर लेखन रहा है। लेखक से ravism.mj@gmail.com मेल आई डी के जरिऐं सम्पर्क किया जा सकता है।)

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