Wednesday, May 11, 2011

Monday, May 9, 2011

सत्याग्रह को अपमानित करता प्रशासन




कुछ सामान्य हकों के लिए अनसन पर बैठे छात्रों के साथ अक्सर सुननें मे आता है,कि उनपर पुलिस ने लाठियां भांजी गयी।अभी जामिया मीलिया में भी ये वाकया दोहराया गया।कुठिंत कुलपति के इशारे पर जामिया नगर पुलिस ने निर्दोष छात्रों को पीटा।छात्राओं के साथ भी बत्तमीजी की गयी।कुछ दिनों पूर्व इन्ही के इशारे पत्रकारिता के छात्रा का सामान उसके हास्टल से बाहर फेक दिया गया था। इस लाठीचार्ज में छात्र छात्राओं पर ना सिर्फ पुलिस बल्कि जामिया प्रसाशन ने भी हाथ साफ किया। कितने दुख की बात है कि आज के इस समय में दिल्ली भष्ट्राचार के खिलाफ शुरू हो चुकी जंग की साक्षी बन रही है। वही देश के एक ऐसे नामी संस्थान में सत्याग्रह कर रहें छात्रों पर ऐसी कुंठा से भरा वाकया जानबूझ कर सोची समझी मांसिकता के साथ अंजाम दिया जाता है। इन्हे सत्याग्रह का अर्थ नही पता,अगर स्वंत्रत देश में सत्य के लिए आग्रह कर रहे अहिंसात्मक आंदोलन कर रहे निर्दोष छात्रों पर एक विश्वविद्यालय की कुंठा इस रूप में परिणित होती है,तो अगर आज महात्मा गांधी आज जिन्दा होते तो निश्चय ही वो निशस्त्र प्रतिकार की शिक्षा ना देते।ऐसे शिक्षको को पढानें का क्या हक है,जो पुलिस के साथ मिल कर अपने छात्रों के साथ मार पीट करतें है।ऐसे कुलपति को अपने पद पर बना रहनें का क्या हक है?देश को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी के द्वारा देश को सत्याग्रह की शिक्षा मिली है।उसका प्रयोग कर रहें छात्रों पर लाठियां भांजना क्या गांधी व सत्याग्रह का अपमान नही? आजादी का अपमान नही?जाहिर सी बात है,अपमान है।सत्याग्रह के लिए महात्मागांधी ने लिखा है,कि सत्य के लिए प्रेमपूर्वक आग्रह।अब अगर इस प्रेम पूर्वक आग्रह का ये अंजाम है,तो ऐसे सत्याग्रह का क्या मतलब?किसी को कुछ अडंगा लगा कर परीक्षा में बैठने से रोक देने से परीक्षा की गरिमा,निष्पक्षता व मानक नही बढ जाते।बल्कि नकल विहीन,पक्षपात से दूर,व शिक्षको द्वारा सही मूल्यांकन किऐ जाने से कोई परीक्षा आदर्श होती है।
इसके अतिरिक्त गंगा को लेकर नैनीताल उच्च न्ययालय के भष्ट्राचार के खिलाफ 68 दिन से अनशन पर बैठे संत निगमानंद को पुलिस द्वारा उठवा लिया जाता है।और अस्पताल में जबरियां भर्ती करवा दिया जाता है। और अब वे कोमा में चले गऐ है।19 फरवरी को उनका अनशन शुरू हुआ,और 27 अप्रैल को पुलिस गिरफ्तारी।पुलिस ने जब उन्हे अस्पताल में भर्ती किया तो वो स्वस्थ थे।अब ऐसी कौन सी दवाईयां उनकों दी गयी जिससे कि वे कोमा में चले गए।सरकार व प्रशासन द्वारा इस प्रकार सत्याग्रह के खिलाफ जो साजिशे है वो सत्याग्रह को बेमानी सिद्व करती है।और आने वाले समय में जन सामान्य को ससस्त्र प्रतिकार पर सोचने पर मजबूर कर रही है।
उधर गत 3 मई को मजदूरों पर हुयी फायरिंग के विरोध मे 9 मई को हुए मजदूर सत्याग्रह को जिस तरह से पुलिस ने लाठीचार्ज कर कुचलने का प्रयास किया।वो किसी तानाशाही से कम नही प्रतीत होता।जब जनता से उसके प्रतिरोध का शांतिपूर्ण किया जाने वाला अधिकार छीन लिया जाता है।तो जनता के पास एक ही चारा रह जाता है,ससस्त्र प्रतिकार।पहले से घोषित सत्याग्रह को कुचलने का ये शर्मनाक वाकया वास्तव में नेताओं व प्रशासन के दोगलेपन को बयां कर रहा है।एक तरफ तो इन नेताओं ने देश को आजादी के बाद से ही लूट लूट कर विदेशो में देश की पूंजी को सडा रहें है।उसको वापस लाने की पहल कवायद एक भी नेता व्यापारी करता नजर नही आ रहा।दूसरी तरफ अपने छोटी छोटी मांगों के बदले जनता को ये सिला मिल रहा है।जाहिर सी बात है,लगता है भारतीए संस्कृति,सभ्यता,मानवता सभी मूल्य नेताओं द्वारा व प्रशासन द्वारा नेताओं की चाटुकारिता के कारण बेमाने हो गए है।इतना बदनाम किया इन लोगो ने गाँधी को और उनके सत्याग्रह को कि शर्म आती है अब तो महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता कहते भी, आज का समय भी किसी गुलामी से कम नहीं..अदम गोण्डवी साहब की एक कविता ध्यान आ रही है इन नेताओं पर..............

जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दोस्तान को नीलाम कर देंगे

ये बन्दे-मातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे

सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे