Tuesday, October 18, 2011

भष्टाचार,फिजूलखर्ची या कि विकास


ये कैसा विकास
विकास की किस परिभाषा में करोडों का पार्क,स्मारक बनवाना विकास कहलाता है।दलित कल भी पिछडा था,आज भी पिछडा है,और जो कुछ कर रहा है अपनी मेहनत से ही कर रहा है।आधुनिकता की अंधी दौड में बहते ये नेता जन शब्द का अर्थ ही भूल गए है।तो फिर जन सेवा का क्या मतलब होता है,ये कैसे समझ सकते है। कोई भी नेता हो,किसी पार्टी का हो,आज किसी भी नेता के अधिकार क्षेत्र के किए गए कार्यो की समीक्षा की जाए तो भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची ही क्यों उजागर होते है?
इस साल जब देश ने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में युवाओं का सर्मथन देखा,तो नेताओं को भी समझना चाहिए कि जिस तरह के हालात में देश के भीतर आम आदमी रह रहा है,और बढती मंहगाई उसके लिए रोजमर्रा की परेशानी का कारण बन रही है।वह एक बडा सवाल खडा करती है। आखिर क्यों देश की ये दशा होती जा रही है?कि आम जन को हर तरफ दिक्कतें ही नजर आती है?मंहगाई और भ्रष्ट तंत्र ने आम जन का जीना दूभर कर दिया है।
जन सेवा के नाम पर चुने नेताओं को ये छूट कहां कि जनता के पैसे को जैसे चाहे वैसे खर्च करे।अपनी मूर्तियां लगवा कर अपनी जीवन गाथा पत्थरों पर उकेर कर जनता के पैसे की बरबादी क्यों?दलित नेताओ महापुरूषों के नाम पर ये दिखावा क्या शोभा पाता है?

एक तरफ भारत का किसान,शिक्षक,छात्र,आम आदमी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रहा है।देश भष्टाचार की आंधी में जल रहा हो।ऐसे में दलित महापुरूषों के नाम पर अपनी मुर्तियां लगवाना कहां तक उचित है?
एक तरफ देश का किसान कर्ज में डूबा है,दूसरी तरफ उसके मेहनत से पैदा अनाज को गोदामों मे किसान से औने पौने दाम में खरीद कर सडाया जा रहा है।बरसात मे उसके बदइंतजामी की खबरें पढने को मिलती है।
उच्च शिक्षा बदहाल है तो प्राइमरी शिक्षा का इस देश में कोई भविष्य नही।सरकारी विभागों में भष्टाचार रूपी दीमक लगा है।इस देश मे आज भी लोग भूखे सोते है,या एक टाइम ही खाना खाते है,और फिर भी सरकार के हुक्मरान गरीबी की औनी पौनी परिभाषा देने में नही चूकते।
आजादी के ६० वर्ष बाद भी देश के तमाम इलाकों में सडके नही पहुची,लाइट व अन्य साधनों की बात तो छोड ही दे।जहां सुविधाऐं पहुची भी है वो बदहाल है।देश के मुख्य मार्ग गडडों से भरे है।
क्या केन्द्र की सरकार क्या राज्यों की सरकारें सभी जनता के लिए उनके सुविधा के लिए नही सोचती।वो केवल वोट की राजनीति करते है।और हराने पर क्यूं हारे इसकी समीक्षा करना जानते है।लोक तंत्र में जनता मालिक होती है।और जनता के सुविधा के लिए कानून बनाये गये है।
किन्तु नेता ये समझते है कि वो चुन कर गए है तो कुछ भी कर सकते है कोई भी निर्माण करा सकते है।कोई भी योजना लागू कर सकते है।तो ऐसा नही है आज बढते संचार के साधनों ने ही आम जन को इतना जागरूक किया है। कि अब किसी भी नेता को अगर वो जन विरोधी कार्य करता है।तो उसके पूरे कार्यो को समझते है, अब ये उस जन की जिम्मेदारी होती है की वो ऐसे लोगो को सबक सिखा दे।और आने वाले समय मे नेता वोट के लिए नही विकास के लिए राजनीति करें।तो शायद आने वाले कुछ वर्षो के बाद भारत का सच मे विकास दिखें किसान और गरीब के साथ शहरों में रहने वाला आम आदमी भी सुख से रह सके।
http://www.mediamanch.com/Mediamanch/Site/HCatevar.php?Nid=2401
media manch 19-10-2011

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