Friday, October 28, 2011
मीडिया के नियन्त्रण पर किसका हित
पिछले कुछ आंदोलनों को देखकर सरकार की मंशा व नजरिया साफ तौर पर मीडिया को नियन्त्रित करने की है,ताकि वो खबरें समाज तक ना पहुचें जो सरकार की कार्यगजारी को उजागर करती हो।आइये उन प्रश्नो के उत्तर तलासते है जो इस सरकारी मंशा से खडे होते है?और प्रेस कानून में किन बदलाव की जरूरत है?और किन बदलाव की ओर सरकार की मंशा है?
पहले तो क्या प्रेस कानूनों मे बदलाव की जरूरत है? तो जी हां आज के परिवेश को देखते हुए ,पत्रकारों की दशा और स्थित को देखते हुए।प्रेस कानूनों में बदलाव की जरूरत है।क्यों कि आज प्रेस कानूनों को प्रेस के सबसे छोटी ईकाई जिला संवाददाता के भी हित में होना जरूरी है।
अभी क्या हो गया कि भारतीय पत्रकारिता की गति अवरूद्घ करने का सियासी माहौल तैयार होने लगा है।तो आज के सियासत कारों को ये लगने लगा है कि उनकी कार्यगजारी को अगर जनता तक पहुचाने वाले तंत्र को ही कुछ अवरूद्व कर दें तो उनके कार्यकलापों को जनता तक पहुचाने वाली पत्रकारिता कमजोर हो जाएगी।और ये घोटालेबाज नेता आराम से इस देश का पैसा अनाप सनाप अपनी निजी मंशा से खर्च सकेगें या भ्रष्टाचार कर सकेगें।इनको अपने देश की आजादी का इतिहास शायद नही पता तभी तो कछ भी बोलते है,कछ भी करते है।पिछले कछ उदाहरण दूं तो मनीष तिवारी सरीखे नेता को मर्यादा हीन होकर बोलते हुए देखकर इन नेताओं को नही लगा कि नेताओं के अधिकार भी एक आम आदमी के अधिकार से ज्यादा नही है।लेकिन फिर ये क्यूं अपने पद के रसूख में अपनी मर्यादा भूल जाते है।आजादी के समय भी तमाम अधिनियम बना भारतीए पत्रकारिता को कमजोर करने के कार्य हुए थें।लेकिन पत्रकारिता तब भी नही डिगी थी अपने राह से ।आज भी पत्रकारिता अपने राह पर ही है।और कोई भी सेंसर पत्रकारिता को अवरूद्व ना कर सकेगी।
आज उन नामो पर जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आदोंलन से जडे थे,उन पर लगाम लगाने की कोशिशे रंग लाती नजर आ रही है।हो सकता है,ये मुहीम यही दम तोड दे लेकिन जंतर मंतर व राम लीला मैदान की भीड रूपये से खरीदी भीड नही थी।और इस देश की सियासत के निरालें रंग है,अभी कछ ही रंग दिखे है।गंगा जमनी तहजीब के रंग तो अभी चनाव में ही दिखेगें।
मीडिया के नियन्त्रण पर समाज या सरकार किसका हित है?अगर इस प्रश्न का उत्तर तलासेगें तो उत्तर यही मिलेगा कि जनता के हित में कोई फैसला सरकार को लेना हो या यूं कह दें आज के नेताओं को लेना हो, तो वो अपनी राजनैतिक लाभ यानि वोटो का गणित जरूर बैठाएंगे कुंल मिला कर मीडिया को नियन्त्रित करने की मंशा जन हित मे नही है। मीडिया के नियन्त्रण पर किसका हित है?पेड न्यूज में किसका हित है?और मीडिया का सहारे का सबसे ज्यादा फायदा कौन उठाता है?ये बताने कि जरूरत ही नही है।
पत्रकार के लिए भी नियम कायदे कानून उतने ही है जितने की आम आदमी के,पत्रकारों के लिए भी आचार संहिता है,और प्रेस आयोग भी।वे वैसे ही कार्य कर रहे है जैसे कि देश में अन्य कानून कार्य करते है। तो पहले देश के आम आदमी को न्याय मिलने लायक कानून मजबूत करें।पत्रकार भी अपने आप उन्ही कानूनों के अन्दर आ जाएगा क्योंकि पत्रकारों को उतनी ही स्वतंत्रता है जितनी कि आम आदमी को।
सूचना क्रान्ति ने ना सिर्फ खबरों के माध्यम बदले बल्कि खबरों के तरीके और तेवर भी बदल दिए।जाहिर सी बात है आज सूचना संप्रेषण का इतना महत्व है व संप्रेषण के इतने साधन है कितनों पर और कैसे नियन्त्रण लगेगें।जाहिर सी बात है,भारत के राजनेताओं को विकास की राजनीति के नाम पर वोट मांगने की जरूरत है।
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