Friday, November 16, 2012

अपनी संभावनाऐं जानता है मीडिया


आज की राजनीति उस गंदे नाले की तरह है जिसकी सफार्इ नही होती और पत्रकारिता उस नाले मे घूमने वाले सूअर की तरह है। तो आप बखूबी अंदाजा लगा सकते है कि अकेले पत्रकारिता कितनी सफार्इ कर सकती है वास्तव मे,आजादी से पहले और बाद दोनो ही समय मे इस हथियार का बडा कायदे से लोगो ने इस्तेमाल किया ।
आज कोर्इ भी आमोंखास सभी पत्रकारिता के बारे मे कुछ भी राय रखने लगे है।एक तरह से पत्रकारिता के लिए यह अच्छा है, लेकिन क्या ? उनके द्वारा दी गयी पत्रकारिता की परिभाषा पूरी तरह सही है।या नीम हकीम खतरे जान ,अधूरी जानकारी मे वो अपना ज्ञान बघार रहे है। खास कर नेताओं को मीडिया से बडी नाराजगी है। लेकिन फिर क्यों मीडिया के कामकाज मे बहुत दखलन दाजी रखते है । और इन गधों की सारी परिभाषा पत्रकारों के इर्द गिर्द शुरू होती है। संस्थान के ओनर के विषय मे इनकी परिभाषा कोर्इ बात नही करती क्यों ? क्योंकि आज तमाम चैनल , न्यूज पेपर मे इनका पैसा लगा है । मीडिया एक लाभ और फेम का धंधा है।और चुनाव के समय ये मीडियम इन नेताओं का ऐजेंडा सेट करने के काम आते है। इसलिए समाज मे पत्रकारों व पत्रकारिता को बदनाम करके आज पत्रकारिता को इन्टरटेंमेंट का साधन बना डाला है। तमाशें मे तब्दील हो गयी है आज की पत्रकारिता । क्यों पेड न्यूज का सारा ठीकरा पत्रकारों पर फोडा जाता है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शुक्रवार को कहा,गैर जिम्मेदार पत्रकारिता का जबाब सेंसरशिप नही है और मीडिया के आत्म नियमन की वकालत की । लेकिन यह नही सोचा कि नियमन की जरूरत है वास्तव मे , नेताओं के द्वारा मीडिया मे पैसे लगाने के नियमन की और मीडिया के द्वारा अपना ऐजेंडा सेट करने के नियमन की जरूरत है । प्रेस दिवस पर प्रधान मंत्री ने पत्रकारिता के हित की खूब बाते की , उन्होने कहा कि पत्रकारिता को बाह्य नियन्त्रण से मुक्त होना चाहिए। जी हां होना चाहिए लेकिन क्या पत्रकारिता बाह्य नियन्त्रण से मुक्त है? नही ना तो फिर किसका नियन्त्रण है ,आज की पत्रकारिता पर सोचिए जरा । मीडिया हाउसों के मालिकों का या फिर जिनके पास इन बडी बडी मीडिया कंपनियो के शेयर है। कौन है ये ?मीडिया हाउसों के ओनर  नेता जन या फिर  कारपोरेट का कोर्इ धन पशु । आज कारपोरेट मे आती है पत्रकारिता प्रधानमंत्री जी,और आज के समय मे पत्रकारिता के सरोकारों की बात भी करना बेर्इमानी है। मीडिया अपना काम कर रहा है। तमाम आर टी आर्इ ऐकिटवसट मार दिए गये तमाम अच्छे पत्रकारों को पुलिसिया डंडे खाने पडते है। ये ओनर तो उन्ही के मेहनत की मलार्इ खाते है। डंडा खाऐ पत्रकार मलार्इ खाऐ ये। और अन्त मे एक आध चोरों के कारण पूरी पत्रकारिता बदनाम। कौन है ये पत्रकारिता को चरित्र प्रमाण पत्र देने वाला पाक चरित्र आदमी जरा बताऐ तो नाम । कैसा है उसका चरित्र ? उत्तर नही मिलेगा , मै जानता हूं पत्रकारिता आज भी जनसरोकारों के साथ है । बस ये बनिये व नेता अपनी हद मे रहे पत्रकारों को ज्यादा सिखाने की जरूरत नही है। पत्रकारअपना काम पूरे सरोकारों के साथ कर रहे है।

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