Saturday, November 24, 2012

फेसबुक पर कमेंट करना कोई गुनाह नहीं


अभिव्यक्ति की आजादी सभी को है। फेसबुक पर कमेंट करना कोर्इ गुनाह नहीं है। मुम्बर्इ पालघर में दो लडकियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पडी। महज फेसबुक पर कमेंट करना भारी पडा।

आजादी के बाद संविधान का निर्माण हुआ। जिससे देश के राजनैतिक, एंव सामाजिक परिदृश्य में परिवर्तन आया। समाचार पत्रों के उददेश्य में भी परिवर्तन आया, अब समाचार पत्र व न्यूज चैनल खबरों के साथ मनोरंजन सामग्री भी प्रकाशित करने लगे संविधान में मिली अभिव्यकित की स्वतंत्रता का पत्र मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने लगे हैं। ऐसे न्यूज चैनलों व समाचारपत्रों के खिलाफ कोर्इ आवाज उठती नही सुनार्इ देती है।

लेकिन फेसबुक पर कमेंट की वजह से किसी को पुलिस पकडे तो सोचना पडेगा, क्या देश मे अभिव्यकित की स्वतंत्रता है?अगर फेसबुक समाज का मीडिया है तो पुलिसिया कारवार्इ की इसी मीडिया पर खूब आलोचना हुयी है।

आज भारत को स्वतंत्र हुए 63 साल हो गये है। इतने सालों मे समाचार पत्र इतने आधुनिक हो गए है। कि वो मसालेदार खबरों को बेचते है। एक तरफा खबरों को बेचते है । पेड न्यूज के मकडजाल मे उलझे मीडिया समूहो को कोर्इ कानून नही रोकता लेकिन सामाजिक स्वतंत्रता को बाधित करने के षडयन्त्र रोज ही रचे जाते है। सोशल मीडिया की ताकत को जानती है,सरकारें। यही कारण है कि राजनेताओं के अंडबड बयान सोशल मीडिया पर आते ही रहते है। क्या सोशल मीडिया पर लिखना मना है। महज ये लिखने पर कि बाल ठाकरे जैसे लोग रोज पैदा होते है और रोज मरते हैं पुलिस छात्राओं को गिरफ्तार कर लेती है। तो इसे वाक व अभिव्यकित की स्वतंत्रता मे बाधा ना माना जाए। और ये क्यों ना माना जाऐ कि ऐसे कार्य सत्ताधारियों के इशारे व दबाव मे पुलिस करती है?

गणेश शंकर विधार्थी ने भाषा की स्वतंत्रता को इस प्रकार व्यक्त किया था - मुझे देश की आजादी और भाषा की आजादी में से किसी एक को चुनना पड़े तो नि:संकोच भाषा की आजादी चुनूंगा। क्योंकि देश की आजादी के बाद भी भाषा की गुलामी रह सकती है। लेकिन भाषा आजाद हुर्इ तो देश गुलाम नहीं रह सकता। तो गणेश शंकर विधार्थी के इस कथन को माने तो हम आज भी गुलाम है। क्यों कि अगर वाक व अभिव्यकित के वजह से किसी को पूरे देश के सामने शर्मिदा होना पडे। पुलिसिया जांच का शिकार होना पडें,तो ये शर्म का विषय है।

मुम्बर्इ जैसे दिन रात जागने वाले शहर के बंद पर सवाल उठाने पर तो मुम्बर्इ पुलिस बडी मुस्तैद निकली। और इन लडकियों के चाचा के क्लीनिक मे घुस कर तोड फोड करने वालों को सोशल मीडिया पर विरोध के बाद गिरफ्तार किया। आखिर ऐसा क्यों किया ? क्या कोर्इ राजनीतिक दबाब था ? तमाम सवाल साफ है,और मुम्बर्इ पुलिस को जबाब देना पडेगा। कि भारत के आम जन को वाक व अभिकित की स्वतंत्रता है या नही ? और अगर है तो इस घटना की नैतिक जिम्मेदारी कौन ले रहा है ?

मीडिया के हो हल्ला मचाने के बाद , फेस बुक पर थू थू होने के बाद पुलिस ने इस घटना पर जांच बैठा दी है। माना लड़कियां मुम्बर्इ जैसे शहर की रहने वाली है। लेकिन अपमान व पुलिसिया फटकार कोर्इ भूले नही भूल पाता है। फिर ऐसे मे उन लडकियों को गिरफ्तार करने का आदेश देने वाले अधिकारी व पुलिस वालों की बर्खास्तगी क्यों नही? डरी सहमी शहीन ने अपना फेसबुक एकांउट बंद कर दिया। और उसकी सहेली ने कहा कि वो अब कभी कमेंट नही करेगी। क्या अपनी बात को कहने की आजादी नहीं है क्या ?

ये तो पक्का है कि हमारे देश की पुलिस नेताओं के इशारों पर नाचती है। अगर ऐसा नहीं है तो बाल ठाकरे के खिलाफ तो लाखों ने लिखा है, लेकिन लिखने के मामले मे हमला मुसलमान पर ही क्यों ?

हिन्दी के जाने माने कवि नागार्जुन ने भी तो बहुत पहले 7 जून 1970 को ही ठाकरे के बारे मे एक पूरी कविता लिख दी थी '' बर्बरता की ढाल ठाकरे '' किसी प्रशासन ने उन्हे गिरफ्तार नही किया था।ठाकरे के मरने पर और इस कविता को बहुत सारे लोगो ने अपने फेसबुक पर शेयर भी किया। उन पर कार्रवाई क्यों नहीं केवल दो मुस्लिम लड़कियों पर ही कार्रवाई क्यों ? आखिर किसी की कोर्इ व्यक्तिगत वजह तो नही?

बाल ठाकरे के बारे मे हिन्दी के जाने माने नाम राजेन्द्र यादव ने भी अपने वाल पर खूब लिखा है और नागार्जुन की कविता भी शेयर की है। तो राजेन्द्र की गिरफ्तारी क्यूं नही ?

वास्तव मे अगर फेसबुक स्टेटस के वजह से शाहीन को गिरफ्तार किया गया है । तो सामना व दोपहर का सामना के संपादको को पिछले कर्इ सालों मे सैकडों बार गिरफ्तार किया जाना चाहिऐ। सामना के संपादकीय ऐसे भडकाउ बयानों को सर्मर्थित करते रहे है ,जो उन्ही धाराओं के अनुसार संगीन अपराध है जो शाहीन पर लगाऐ गये । संपादकीय लिखने वाले ठाकरे और उनके संपादक संजय निरुपम से लेकर प्रेम शुक्ला और संजय राऊत तक की पूरी जिंदगी जेल जाते . जाते और बेल लेते . लेते बीत जाती । इनके खिलाफ कभी पुलिस की चूं भी हमने नहीं सुनी। ठाकरेशाही के सामने पुलिस की क्या हैसियत और पुलिस के सामने शाहीन जैसी लड़कियों की क्या हैसियत । ये देश के लिए और ख़ासतौर से महाराष्ट्र के लिए शर्मनाक है। निर्बल मजदूर ,रिक्सा चालकों उत्तर भारतीयों को मारा पीटा । जिसने हमेशा राष्ट्रविरोधी बयान दिया। उसे तिरंगे में लपेटकर प्रदेश सरकार ने अपनी चाटुकारिता का परिचय दिया है। और मुम्बर्इ पुलिस ने शहीन को गिरफ्तार कर राजनैतिक चाटुकारिता का परिचय दिया है।शर्म है ऐसी पुलिस पर। 

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