Monday, December 24, 2012

पुण्य प्रसून के साख पर दाग लगाने के बाद हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां


हिन्दी पत्रकारिता के नए हालात और चुनौतियां


साल 2012 का आखिरी महीना चल रहा है। पिछले साल की तरह ही ये साल भी कुछ खास नही रहा है, हिन्दी पत्रकारिता के लिए। हिन्दी पत्रकारिता मे जिस तरह सच और खरा बोलने वालों की संख्या तेजी से कम हुयी है। उसी तरह हिन्दी पत्रकारिता की धार कुंद होती चली गयी है व साख को घुन लग गया है। अभी प्रभूचावला व बरखा दत्त को हम भुला नही पा रहे थे कि जी न्यूज के समीर अहलूवालिया व सुधीर चौधरी की कारगुजारी पचाऐ नही पच रही। और उस पर पुण्य प्रसून का इन लोगो का पक्ष लेना, खुद पुण्य प्रसून के साख को दाग लगा गयी।
हिन्दी पत्रकारिता के ये नए हालात नयी चुनौतियों को पेश कर रहे है। जिसका क्या प्रभाव होगा ? ये तो आने वाला समय ही बताऐगा। लेकिन इस हालात से मार्कण्डेय काटजू जैसे लोग जरूर खुश हुए होगें। कुछ दिनों पहले इन्होनें कहा था कि प्रेस की आजादी को कुचल देना चाहिए  हालाकि इस बात के लिए बाद मे इन्होनें माफी भी मांग ली थी।लेकिन क्या इनकी ऐसी मंशा नही समझी जाए अगर ऐसी मंशा नही थी तो कहा क्यूं था?
हरिहरन की गायी एक गजल याद आ रही है  जब कभी बोलना वक्त पर बोलना मुददतो सोचना मुखतसर बोलना  सही भी है क्योंकि एक बार निकले हुए शब्द वापस नही आते।
खैर मुददे पर वापस लौटते है। क्या हिन्दी पत्रकारिता आर्थिक राजनैतिक और सामाजिक समस्याओं के समाधान के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा पा रही है?
मीडिया की जिम्मेदारी समाज के प्रति है। जब तक उसकी समाज मे साख बरकार है उसके चौथे खम्भे का स्वरूप बना रहेगा। लेकिन लगातार विघटन कारी ताकतें मीडिया की साख को कमजोर करने के प्रयास मे लगी हुयी है। पिछले दिनों दो संपादक क्या गिरफ्तार हुए लगा पूरा का पूरा संपादक कुनबा ही दोषी हो गया। फिर भी पत्रकारिता आज भी राजनीति जैसे पेशे से साफ है। क्योंकि पत्रकारिता आज भी जन से जुडी है। आज तो नयी पत्रकारिता का दौर है,हर आदमी पत्रकार है। नयी मीडिया सभी के लिए है। मै फेसबुक आरकुट आदि की बात कर रहा हूं। कहां तक कमजोर करने की कोशिश करियेगा साहब?
लेकिन फिर ये साल भी गुजरते गुजरते हिन्दी पत्रकारिता पर कुछ दाग तो लगा ही गया।
पुण्य प्रसून जैसे मीडिया कर्मी जिनकों जाने कितने सफल मीडिया कर्मी अपना हीरों मानते थे। बाजार ने उनकी भी साख सैलरी के बदले खरीद लिया। ऐसा क्यूं हुआ ?
माखन लाल चतुर्वेदी ने कहा था  पत्र हमारा शस्त्र है शत्रु हमारा शस्त्र ही तोड डाले ऐसा अवसर मत आने दो। फिर भी यह सत्य है कि सत्य को प्रकाशित ना करें तो सत्य से विचलित होगें। तुम्हारा ये खेल मंहगा भी पड जाए तो मुझे पश्चाताप नही होगा
                                                         अब अगर माखन लाल चतुर्वेदी के शब्दों पर गौर करें और वर्तमान का विश्लेषण र्इमानदारी से करे तो आज तो मीडिया का सबसे बडा शत्रु तो मीडिया संस्थानों का मालिक है। और ये मीडिया संस्थान या तो नेताओं के है या फिर किसी पूंजी पति के फिर पत्रकारिता को दोषी क्यों बनाया जाता है? क्यों किसी पेड न्यूज के सामने आने पर पहले उस संस्थान के मालिक को नही पकडा जाता। क्यूं किसी को अपने साख पर दाग लगाने को मजबूर होना पडता है?यही नही आज समाज मे पत्रकारों पर हमले भी ज्यादा हो रहे है। क्यों पत्रकारों को सुरक्षा नही मिल पा रही है? तमाम प्रश्नों के बीच सबसे बडा प्रश्न पत्रकारिता की साख का है।खबरों की सत्यता व निश्छलता का है।
वर्तमान मे पत्रकारिता को ऐसे पत्रकारों से सीख लेनी चाहिए। और पत्रकारिता समाजिक सरोंकारों से जुडी हुयी होनी चाहिए। पत्रकारों को स्वार्थो मे पड कर अपने वास्तविक उददेश्यों को नही भूलना चाहिए और जो सही मायने मे सामाजिक उददेश्यों व हितों से जुडी हो ऐसी पत्रकारिता को पत्रकारिता से माना जा सकता है।


No comments:

Post a Comment