Tuesday, April 19, 2011

बाजार के हाथों बिक गयी मीडिया







पूरी दुनिया के समाचार चैनलों व समाचार पत्रों के लिए पिछले दो दशक सबसे ज्यादा चुनौती पूर्ण रहें है।खास कर भारतीय मीडिया ने इन दो दशकों में खासे उतार चढाव देखें है।सूचना प्रौद्योगिकी में हो रहें बदलाव भारतीय मीडिया को चुनौतियां देते चले आ रहें है।बदलाव कि इस बयार में कई छोटे बडे मीडिया नजर आऐ और कई ने अपनी दुकानें समेटी या फिर अपनी दुकानों से बेच रहें सामान कहने का मतलब है,प्रसारित कर रहें कार्यक्रम या छप रही विषयवस्तु,लेआउट आदि में अमूलचूक परिवर्तन किए।मै किसी खास मीडिया संस्थान का नाम नही लेना चाहता लेकिन बह रही परिवर्तन की बयार में सभी मीडिया संस्थानों ने वो सब कुछ किया,जो उन्हे मुनाफा कमवा सकता था।लेकिन इन सब बातों में कही ना कही सभी ने अपने दर्शकों या पाठकों के साथ धोखा किया।खबरों के साथ ईमानदारी नही बरती,तरह तरह के भ्रामक व घटिया प्रयोग खबरों को लेकर किया।तरह तरह के नए और घटिया प्रोगामों का ईजाद सिर्फ सिर्फ टी आर पी के मकसद से किया गया। अब इस मकसद को पूरा करने के लिए समाचार चैनलों ने अपने नैतिकता से समझौता कर लिया।और अब टी बी यानि बुदधू बक्सा भी नए कलेवरों में रंग गया।बेवकूफ बने आम आदमी का काम रिर्मोट पर केवल हाथ चलाना रह गया।इन लोगो ने ना सिर्फ अपने पाठक,दर्शकों को ही धोखा दिया,बल्कि इन संस्थानों ने अपने परिवार या यू कह ले,अपने कर्मचारियों के साथ भी विश्वासघात किया।धोखा देने के क्रम में कुछ नामी गिरामी मीडिया घरानें भी कम ना निकले उन्होनें पत्रकारिता को बेचने के लिए शिक्षण संस्थान खोल लिया।चमक दमक को दिखा पत्रकारिता की मंहगी गुणवत्ता विहीन शिक्षा को बढावा दिया।बल्कि युवाओं को प्लेसमेंट के नाम पर खासी रकम फीस के रूप में वसूल कर उन्हें चंद रूपए की नौकरी के आगे बेच डाला।और इसके साथ साथ समाज को भी धोखा दिया।उसी का नतीजा निकल कर सामने आया,आज चाहे वो प्रिंट मीडिया हों या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया। सभी ने अपनी विश्वसनीयता को खो दिया है।और बुद्विजीवी वर्ग ये सब देख कर खासा संशय की स्थित में रहा।और कुछ ईमानदार मीडिया बुद्विजीवी जिनसे परिवर्तन की बयार में अपना जमीर ना बेचा गया,उन्होनें अपना धंधा पानी बदल डाला। इन्टनेट और मोबाइल की नयी मशीनी विद्या ने तो भारत की मीडिया की दुनिया ही बदल डाली। कुछ मोबाइल टेपो ने ही बडे बडे दिग्गजों के गर्व को चूर चूर कर दिया।लेकिन काजल की कोठरी में पाक दामन कौन है।जो पकडे गये वो चोर जो बच गए वो दूसरों में कमियां निकालेगें ही।परिवर्तन की बयार ने मीडिया हाउसों को ये तो सिखा ही दिया था कि अगर इस होड में बने रहना है। तो बदल गए पत्रकारिता के बाजार के मुताबिक बिकने वाली खबरें लानी होगी।देर सबेर सभी ने समझा और बदल गए पत्रकारिता के बाजार में सभी उतर पडे।बिना किसी रोक टोक के गुणवत्ता विहीन कार्यक्रम,हसानें के नाम पर फूहडता,क्राइम के नाम पर अश्लीलता, आदि आदि। और ये सभी कुछ किया गया पैसों के लिए। और जब पैसों के लिए इन अखबारों व चैनलों ने अपनी पहचान बेच डाली, तो इन पर क्या भरोसा किया जा सकता है कि ये समाज को कुछ दे सकते है।और अब भारत में अपने पैरों पर खडी हो रही नव मीडिया से ही कुछ उम्मीद बची है। कि वो कुछ सार्थक करें जो देश को रहने लायक बनाए रखें।मै मीडिया चैनलों या अखबारों के खिलाफ नही हूं,बल्कि कहना ये चाहता हूं।इन्होनें अपने व्यवसायी मंसूबों की पूर्ति के लिए ही अपने आधार खबरों के साथ ही नाइंसाफी की।नव मीडिया अर्थात इन्टरनेट से जुडी मीडिया बेब आज ज्यादा लोकप्रिए हो रही है। उसका सीधा कारण है कि सूचनाऐं देने के सबसे तेज माध्यम है।और प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यमों की भी निर्भरता प्रत्यक्ष रूप में बेब माध्यमों पर दिखाई पडती है।और इस परिवर्तित समय में जो ही सबसे जल्दी खबरें दे सकेगा। वो ही अपने उज्जवल भविष्य को देखेगा।अभी तो अखबार टीवी व बेव तीनों में सूचनाऐं देने की होड है, कि कही वो सूचनाऐं देने मे पिछड ना जाऐ। इसी कारण कई बार बडी बडी गल्तियां हो रही है। खैर नव मीडिया भी अभी अपने घुटनों पर चल रही है। देखते है मीडिया आने वाले समय में किस करवट बैठेगी।

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